वो गीत!
और आज जब ये शाम होने आयी है,
मैंने फिर वो गीत बजाया है,
जिसे सुनना बंद कर दिया था!
अब भी ये गीत वैसा ही है- जैसा तब था!
मायने बस थोड़े बदल गए हैं!
अब भी ये गीत मुझको उगाहता है।
अब भी मैं चहक जाता हूँ!
मगर फिर गुम हो, शांत हो जाता हूँ...
जब तक गीत बजता रहा,
ये सिलसिला यूँ ही चलता रहा
उगाहने का, चहकने का, गुम हो जाने का!
जैसा होता है हमेशा, गीत भी खत्म हो गया!
अँधेरा हो चुका है,
कोई परछाई आती दिख रही है!
मैं सजग हो जाता हूँ, कि कौन है!
सोचने लगता हूँ, शायद तू ही हो! - - नहीं!
परछाईं आकर, मुझपे पड़ती है,
और गुज़र जाती है!
मैं वही खत्म हो चुका गीत गुनगुनाता
वहीं बैठा रहता हूँ!
.
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ना जाने कितनी देर तक!
-चन्द्र अम्बर
31.05.2024
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