तुम!

तुम!
मेरे अजीज़! हाँ तुम! 
अरे तुम ही, यार! 

प्रेम करना... 
जीवन जी भर के जीना!
सबसे प्रेमपूर्वक मिलना! 
उनसे एक बूंद प्रेम की भी अपेक्षा न रखना!  
अपने अंदर अथाह सागर रखना प्रेम का! 
सागर कभी खत्म नहीं होता! 
उसका कुछ बूंदों से कम-ज़्यादा नहीं होता! 

तुम! हाँ तुम! 
तुम सीखना, जीने की कला!
तुम देखना, अपने आसपास का दर्द! 
तुम महसूस करना, विरह की व्यथा, 
किसी के गुज़रने का मातम, 
किसी की उत्पत्ति का हर्ष! 
आने और जाने के सच को स्वीकारना! 

तुम इश्क़ में पड़ना,
तुम उसकी लहरों पर चलना, गहराईयों में उतरना! 
तुम गिरना, तुम उठना, 
हाँ तुम! बार-बार गिर कर भी
बार-बार उठना! 
तुम सजना, तुम संवरना!
सब में सुन्दरता देखना!

तुम पागलपन की हद तक जाना,
कभी मन करे तो खूब रोना, 
तुम परेशान हो जाओ, 
तो खूब चिल्लाना! 
कोई ना मिले, तो पन्नों पर ही 
बखान करना, अपनी अज़ीयत को!
तुम लिखना, तुम गाना, तुम बनाना, तुम रंगना! 

जब तुम्हें खूब खुशी महसूस हो,
तो खूब गुनगुनाना, 
यारों के संग कहीं घूम के आना! 
तुम नहीं, कहीं भी ज़्यादा हिचकिचाना!
नयी नयी जगहों पर जाना! 
नए यार बनाना! 
तुम खूब बौराना!

तुम कोई काम मन का करना,
और मन से करना! 
थकना तो आराम करना, 
निराश न होना! 
कभी उकता जाना, तो थोड़ा गुनगुनाना! 
धन भी काफ़ी कमाना, 
मदद भी खूब करना लोगों की 
विनीत बनना, पात्र बनना, अनुग्रहित बनना! 

तुम साहस रखना! 
जो तुम पवित्र मानते हो, सत्य मानते हो, 
उसके लिए भरपूर लड़ना! 
कोई माने, ना माने अपनी बात ज़रूर रखना!
अपना अस्तित्व अपनी नज़रों में अमर रखना! 
और फुर्सत मिले न मिले, 
अपना, अपनों का खयाल रखना!

-अम्बर

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