वो, वक़्त और मैं

वो, वक़्त और मैं

वो, वक़्त और मैं
कभी तो साथ चलते। 
बेबात ही सही
कहीं तो बात करते। 

ऐसा नहीं कि बात नहीं कुछ
या मुलाक़ात नहीं कुछ...।
फटा ही पन्ना होता, 
एक ही पन्ने पर बात तो करते।

मयस्सर नहीं आसानी से, 
आसान ना सही...
शायद बिगड़ जाती कहानियाँ,
शुरूआत तो करते। 

वो, वक़्त और मैं
कभी तो साथ चलते... 
रास्ते भटकते ही सही,
साथ तो भटकते। 

तुकबन्दियां न बनतीं
ना ही सही... 
टूटे-फूटे अक्षर ही होते,
शब्दों में साथ तो होते। 

वो, वक़्त और मैं
कभी तो साथ चलते। 

-अम्बर

11 जनवरी 2024

Comments

Shishir mishra said…
This one is great. Filled with hope and nostalgia and remembrance of past loving memories ❤️❤️

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