पहली जनवरी का सफ़र

पहली जनवरी, कड़कड़ाती ठंड, ट्रेन का सफ़र
खिलखिलाते नन्हें
चहक उठते हैं 
झालमुड़ी वाले की आवाज़ सुनकर!

स्टेशनों का दौर गुज़रता जा रहा है,
और कुछ घंटों के लिए 
जो साथी बने थे इस सफ़र में
उतर जाते हैं अपने-अपने स्टेशनों पर

फिर उन चहकती आवाजों के बीच 
हम भी पहुंच जाते हैं अपने गंतव्य पर, 
साल की शुरुआत करने.. 
धीरे-धीरे वो साथी, वो चहकती आवाज़ें
ओझल हो जाती हैं!

महीनों बाद अपनी दिनचर्या में लीन 
एकाएक सफ़र के कुछ लम्हों को याद कर 
हम खुश होंगे, चहकती आवाजें गूंजेगी कुछ देर! 
दिनचर्या फिर हावी हो जाएगी, 

फिर सब भूल कर हम व्यस्त हो जाएंगे.. 
अगली जनवरी फिर से सब याद करने को!! 

-चन्द्र अम्बर 

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