सबसे बुरा गुनाह!
सबसे बुरा गुनाह है
प्रेम को शब्दों में पिरोना।
मुमकिन नहीं है बांध पाना लफ़्ज़ों में
उसकी गहराई और पवित्रता को..
तो क्यूँ ये बेकार की कोशिश
उसे सीमाओं में रखने की?
यदि है प्रेम औ' आदर..
तो दिखे तेरे अदब में
सभी की तरह..
यह भी गुज़र जाएगा.
तो क्यूँ अमर किया जाए
इसे शब्दों में....?
ये कवि, शायर बड़े बेवकूफ़ होते हैं.
मैं भी बेवकूफ़ रहा हूँ..
सबसे बुरा गुनाह है
प्रेम को शब्दों में पिरोना।
-अम्बर
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