घर जाने की इच्छा

शाम होने वाली है,
घर पहुचने की जल्दी है.
ओस गिरने लगी है.
थोड़ी ठंड लग रही है।

मन रुक सा गया है,
मानो वापस ले जाना चाहता हो.
कहाँ? किसी को पता नहीं.
मैं जानना भी नहीं चाहता!

ट्रेन लेट हो गई है!
खिड़की से बाहर धुंध है!
स्टेशन गुज़रते जा रहे हैं.
घर फिर भी दूर ही है.

घर जाकर मम्मी से क्या कहूंगा,
घर पे खाने में क्या होगा?
मेरे टेबल पर क्या क्या रखा होगा!
इस सब का कोई जवाब नहीं सूझता!

अब अंधेरा हो गया है.
बाढ़ स्टेशन पर ट्रेन रुकी!
घर पहुंचने की इच्छा
और तीव्र होती जा रही..

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बेहद प्यारी कविता 🥰🥰🥰

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