यूँ होने को तो कई होते हैं...

यूँ होने को तो कई होते हैं...
कोई होता मगर नहीं! 

किसी के होने से
ख़याल पैदा होते हैं.. 
कहानियाँ गढ़ी जाती हैं,
सवाल पूछे जाते हैं, 

कितनी मुद्दतों के बाद
मैं चुपचाप बैठा हूँ...
बिना किन्ही ख़यालों के!
बिना सवालों के, कहानियों के। 

अब जब भी मैं बैठूंगा, 
बिना ख़यालों के ही बैठूंगा 
क्यूँकि 
कोई यूँ ही नहीं होता, 
हम मानते हैं तो होता है 

मैं सीख रहा हूँ ये... 
कि मैं सोचता हूँ अतः मैं हूँ, 
जबतक मैं सोचता हूँ कि वे हैं, 
बस तभी तक वे हैं... 

मैं सीख रहा हूँ कि
मैं नहीं था, अभी हूँ, फिर नहीं रहूँगा।
अलावे 
यूँ होने को तो कई होते हैं...
कोई होता मगर नहीं!

-अम्बर 


© Chandra Prakash 

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