यह भी बनारस है: कुछ अ-मुक्त छंद की बातें
गंगा यहाँ से दूर है शायद
हमें बताना पड़ता है, यह भी बनारस है
कहीं तस्वीर से बाहर निकल गए हैं,
क्या करें अस्सी की आरती में
हम शामिल नहीं हो पाए हैं!
हमें बताना पड़ता है, यह भी बनारस है
कहीं तस्वीर से बाहर निकल गए हैं,
क्या करें अस्सी की आरती में
हम शामिल नहीं हो पाए हैं!
काशी को पर्यटक केवल घाटों तक जानते हैं,
कभी नदी किनारे से चलकर किनारे तक आ जाओ।
झोंपड़ी के साढ़े चार फुट के द्वार में
झुक-झाँककर देख लो, इसीलिए
दरवाजे़ में कोई साँकल भी नहीं हैं!
विश्वनाथ यहाँ से दूर हैं शायद
हमें बताना पड़ता है यह भी बनारस है!
कभी नदी किनारे से चलकर किनारे तक आ जाओ।
झोंपड़ी के साढ़े चार फुट के द्वार में
झुक-झाँककर देख लो, इसीलिए
दरवाजे़ में कोई साँकल भी नहीं हैं!
विश्वनाथ यहाँ से दूर हैं शायद
हमें बताना पड़ता है यह भी बनारस है!
यह देहात है, यहाँ पर्व सच में मनाते हैं,
लोकतंत्र का पर्व भी शायद, शायद अलग नहीं है,
कुछ दिनों के लिए ही सही, अच्छा लगता है,
नेतवन आते हैं, रुपये-पैसे, दारु-वारु दे जाते हैं,
मांगकर चाय भी पीते हैं, तुरंत फ़िर नहाते हैं गंगा में,
अछूत हमें कहते हैं, मगर वोट की कोई जात नहीं होती
अन्नपूर्णा यहाँ से दूर हैं शायद
हमें बताना पड़ता है, यह भी बनारस है!
लोकतंत्र का पर्व भी शायद, शायद अलग नहीं है,
कुछ दिनों के लिए ही सही, अच्छा लगता है,
नेतवन आते हैं, रुपये-पैसे, दारु-वारु दे जाते हैं,
मांगकर चाय भी पीते हैं, तुरंत फ़िर नहाते हैं गंगा में,
अछूत हमें कहते हैं, मगर वोट की कोई जात नहीं होती
अन्नपूर्णा यहाँ से दूर हैं शायद
हमें बताना पड़ता है, यह भी बनारस है!
पानी तक का लोटा हमारे लिए अलग से रखा गया,
हम सोचते हैं, सत्तर साल में कमसकम रखा तो गया!
यह क्या कम होगा?
ईंटें उठाने बुलाते हैं, खेतों में बुलाते हैं,
पाखाने औ' गटर में उतरने बुलाते हैं,
खून की, पसीने की कोई जात नहीं होती
वरुणा यहाँ से दूर है शायद
हमें बताना पड़ता है यह भी बनारस है!
हम सोचते हैं, सत्तर साल में कमसकम रखा तो गया!
यह क्या कम होगा?
ईंटें उठाने बुलाते हैं, खेतों में बुलाते हैं,
पाखाने औ' गटर में उतरने बुलाते हैं,
खून की, पसीने की कोई जात नहीं होती
वरुणा यहाँ से दूर है शायद
हमें बताना पड़ता है यह भी बनारस है!
दिल्ली की सड़क यहीं से गुज़रती है,
कुछ दूर है शायद
सड़क के दोनों ओर ऊंचे सछूत लोग डेरा डाले हैं,
वहाँ तिरंगे वाला एक किला बना है, ऊँची दीवारों वाला
पर किले में रहने, ठहरने औ' राज करने वाले लोग
अस्सी पर से ही लौट जाते हैं,
गंगा किनारे से चलकर कभी किनारे को नहीं आते,
कुछ दूर है शायद
सड़क के दोनों ओर ऊंचे सछूत लोग डेरा डाले हैं,
वहाँ तिरंगे वाला एक किला बना है, ऊँची दीवारों वाला
पर किले में रहने, ठहरने औ' राज करने वाले लोग
अस्सी पर से ही लौट जाते हैं,
गंगा किनारे से चलकर कभी किनारे को नहीं आते,
तांडव तो हो रहा है मगर महादेव कहीं दूर हैं शायद
हमें बताना पड़ता है यह भी बनारस है!
-चन्द्र प्रकाश 'अम्बर'
Photo #1 courtesy Asia news
Photo #2 courtesy HW mews
©Copyright 2020 Chandra Prakash
Comments