उस दिन ही तो होली होती है!
जब मन-उल्लास मीनारें ऊँची-ऊंची हों,
जब मन-मोहन-मित्रों के संग रंगरलियां सोची हों,
जब मुदित मन के द्वारा प्रिय को मोना-भिगोना हो,
जब मदमस्त मधु के आंचल में सारी चिंताएं खोना हों,
उस दिन ही तो होली होती है!
जब सब संग-संग मोरी तले खेलते हों,
जब मनमोद की मोरशिखा-सी मुकुटें हों,
गुलालों के गुल-घेरे में गुलशनों की क़व्वाली हो,
दिल की आभा भी जिस दिन मतवाली हो,
उस दिन ही तो होली होती है!
किसी कूल पर मनु का कुल कुल गुल के मेले में हो,
गुलालों से गालों और कपालों के फेरे हों,
मधुमाधव के आंगन में जब मदन लेख मुद्रण हो,
चहूँ ओर जब रंगों के गुलशन में हरियाली हो,
उस दिन ही तो होली होती है!
जब मन-उन्मत्ति के न कोई ठिकाने हों,
मनमोदक मनचीता प्रिय कोई बांहों के घेरे में हो,
रंगों के मानसरोवर में प्रिय के आँचल भिगोने हों,
संपूर्ण मधुजा जब खुशियों के बेड़े में हो,
उस दिन ही तो होली होती है!
-चन्द्र प्रकाश 'अम्बर'
© Chandra Prakash
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छा गये शेर।