बंद है

सिली हुई है ज़बान उसकी,
वह अपने मुकद्दर के लिए कुछ बोला तक नहीं,
सारी कायनात में बहस हो रही है लेकिन
उसकी आरज़ू को किसी ने पूछा तक नहीं।

ओझल सड़क है, धुंध-सी ज़िन्दगी है,
खून उबलता तो है मगर, बंद-सी ज़िन्दगी है।
जल-कट-भुन चुका है, रात का निवाला बन चुका है,
शांति है या सन्नाटा है, जाने कैसी बंदगी है?

छुट्टियाँ अब भी हैं बच्चों की, ये स्वर्ग की रौनक है।
सुना है इन्हें प्यार करते हैं सब, यही स्वर्ग की ठंडक है।
ठंड आ रही है धीरे-से, गर्मी तो निकल गयी कब ही,
उसका राशन ख़त्म हो गया होगा, कहो कावा* कब तक है?

स्वर्ग का अम्बर बंद है।
-चन्द्र प्रकाश 'अम्बर' 

*'कावा' कश्मीरी भाषा मे 'चाय' को कहते हैं 


फोटो : साभार अमर उजाला
© Copyright 2019 Chandra Prakash

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